Sadhvi Ritambhara ke anmol vachan

Sadhvi Ritambhara ke anmol vachan

1- कल्पनाओं में सबसे शुद्ध कल्पना तो भगवान के विचार हैं| भगवान का विचार हम जितना करते हैं, हमारे संघर्ष मन के साथ उतने ही कम होते जाते हैं|

Advertisement

2- उठता है तूफ़ान, तो कभी थमता भी है, इंसान बदलाव से तू क्यों डरता है|
3- ध्यान-साधना की गहराई, पृथ्वी को बदलने की ताकत रखती है|
4- संत से मिलन निश्चित तौर पर जिन्दगी में परम-आनंद का प्रसाद बन जाता हैं|
5- दुनिया के सारे रिश्ते सुन्दर हो जाते हैं, जब हम सबसे पहला रिश्ता अपने प्रभु के साथ जोड़ते हैं, सदगुरु के साथ जोड़ देते हैं|
6- ईश्वर को यदि जानना है तो प्रेम के गहरे समुद्र में डुबकी लगानी पड़ेगी|
7- जिसमें सब समाया है, जिससे सब कुछ है, जो सब कुछ है और जो हर जगह है, जो सबमें हैं| उस सर्वशक्तिमान को प्रणाम है|
8- छोटी-छोटी वस्तुओं का गुलाम इंसान परम-प्राप्ति कर नहीं सकता है| अतः पहले मन से मुक्त हो जाईये|
9- शास्त्रों का हमारे ये ही सार है कि, शक्ति ही जीवन है, निर्बलता ही मृत्यु है|
10- मानव अभिमान त्यागकर ही सभी का प्रिय बनता है, क्रोध त्यागने से पछतावा नहीं होता, काम के त्याग से अर्थवान होता हैं, लोभ का त्याग करके सुखी बनता है|
11- हे देव, अपने तेज और तप से हमें परिपूर्ण करिए ताकि, आपका ये प्रकाश हम वहाँ तक पहुँचा सकें, जहाँ अभी भी अशिक्षा और अज्ञान का अन्धकार है|
12- हौंसला हारकर, तू हार का मूल्य न घटा| धार के मझदार से पतवार का मूल्य न घटा, अपनी मजबूरियों के आँसू बहाने वाले, कष्ट से ऊबकर तू प्रेम का दाम न घटा|
13- कौन सी परंपरा का कितना पालन करना है, कितना छोड़ देना है, इसे समझने के लिए बहिर्मुखी नहीं अन्तर्मुखी होना है|
14- अपने जीवन की बुराई एक बार, यदि हमें दिखाई भर दे जाये और हम उसे स्वीकार कर लें, तो फिर वो रुक नहीं सकती है|
15- इंसान अपनी शक्ति और भरोसा ईश्वर को सौंप देता है, तो उसमे से महा शक्ति का जन्म होता है|
16- शक्ति ही शान्ति की नींव है|
17- अगर जानना ही है, अपने आप को जानो, अगर मानना ही है, ईश्वर को मानो|
18- साधना सिर्फ आत्म-कल्याण ही नही करती, बल्कि यह साधक को अनुकरणीय भी बनाती हैं|
19- अच्छे विचारों के साथ अच्छे मार्ग पर चलते हुए, हम ऐसे सत्कर्म जरूर करें कि, हमारी जिन्दगी ‘उल्लास’ और मौत ‘उत्सव’ बन जाए|
20- ध्यान, योग का जरूरी हिस्सा है जो तन, मन और आत्मा के मध्य सम्बंध बनाता है|
21- गुरू के हाथों जो मिटने और बनने को तैयार है, वो ही शिष्य होता है|
22- माला-मनका छोड़ के अब तो घर-घर अलख जगाओ, कुमकुम चंदन तज, माथे पर रज भारत की लगाओ|
23- थोड़ी देर का आनंद तो आप कहीं भी उठा सकते हैं, लेकिन वास्तविक आनंद तो गुरूचरणों में ही प्राप्त होता है|
24- बच्चे तुलसी के पेड़ की तरह होते हैं, जिन्हें संस्कारों के गंगा जल से सींचा जाना चाहिये|

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *