पितृ पक्ष का महत्व: सर्व पितृ अमावस्या कथा और श्राद्ध तर्पण रहस्य

Pitru Paksh ka mahatw serv pitra amavasya katha shraaddh tarpan rahasya

पितृ पक्ष का महत्व: सर्व पितृ अमावस्या कथा और श्राद्ध तर्पण रहस्य Pitru Paksh ka mahatw serv pitra amavasya katha shraaddh tarpan rahasya
 
जानें पितृ पक्ष का महत्व, सर्व पितृ अमावस्या की कथा और श्राद्ध-तर्पण का असली रहस्य। पूर्वजों की आत्मा को शांति देने वाली यह दिव्य कहानी पढ़ें
 

serv pitra amavasya katha Pitru Paksh ka mahatw shraaddh tarpan rahasya

 
नमस्कार आपका स्वागत है। दोस्तों आज हम आपको पितृ पक्ष की सर्व पितृ अमावस्या की महान कथा बताने जा रहे हैं। इसीलिए आप इसे ध्यान से जरूर पढ़ें। पुराने समय की बात है। पितृ पक्ष के अवसर पर एक जिज्ञासु ब्राह्मण के मन में अनेक प्रश्न उठे।
 
आखिर पितृ पक्ष का महत्व क्या है?
पितृ पक्ष क्यों मनाया जाता है ?
श्राद्ध और तर्पण क्यों किया जाता है?
पूर्वजों की आत्माओं को शांति देने के यह कर्मकांड क्यों आवश्यक हैं?
 
इन्हीं प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए उस ब्राह्मण ने ध्यानस्थ होकर धर्मराज यम का आह्वान किया। उसकी सच्ची श्रद्धा और जिज्ञासा को देखकर यमराज प्रकट हुए।
 
ब्राह्मण ने आदर पूर्वक यमराज को प्रणाम किया और विनम्र स्वर में पूछा, हे धर्मराज, कृपया बताइए कि पितृ पक्ष का इतना अधिक महत्व क्यों है? हम पितरों का श्राद्ध और तर्पण क्यों करते हैं? क्या वास्तव में इन क्रियाओं से हमारे पूर्वजों को शांति मिलती है?
 
यमराज ने गंभीर किंतु करुणामय स्वर में उत्तर दिया। हे ब्राह्मण तुमने अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा है। पितृ पक्ष पूर्वजों को समर्पित वह पवित्र काल है जब संतान अपने पितरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती है। श्राद्ध और तर्पण के द्वारा उन्हें तृप्ति और मुक्ति प्रदान की जाती है। पितृ पक्ष का महत्व
 

पितृ पक्ष की सर्व पितृ अमावस्या: श्राद्ध, तर्पण और पूर्वजों की शांति की अद्भुत कथा

पितृ पक्ष की पौराणिक कथा/गरुड़ पुराण कथा
 
इसके महत्व को भली-भांति समझाने के लिए मैं तुम्हें एक पितृ पक्ष की पौराणिक कथा सुनाता हूं। ध्यान पूर्वक सुनो (यह कथा गरुड़ पुराण में वर्णित है और पितृ पक्ष के महात्म को उजागर करती है  जो भी मनुष्य इस कथा को ध्यान पूर्वक पढ़ता है सुनता है, सुनाता है उसके भगवान् 32 अपराध माफ कर देता हो।  
 
ऐसे मनुष्य की कभी दुर्गति नहीं होती है। उसके पितृ उससे संतुष्ट होते हैं और लंबी आयु तथा धनधान्य प्रदान करते हैं। इसीलिए हे ब्राह्मण तुम इस कथा को ध्यान से सुनो। यमराज इतना कहकर उस ब्राह्मण को एक प्राचीन घटना सुनाने लगे।
 
प्राचीन काल में मध्य देश में धनशर्मा नाम के एक पुण्यात्मा ब्राह्मण रहा करते थे। वे सत्यनिष्ठ, सदाचारी और वेद शास्त्रों के गहन ज्ञाता थे। उनके स्वभाव में पाप का लेश मात्र भी नहीं था। भगवान विष्णु में उनकी गहरी आस्था थी और वे प्रतिदिन नियम पूर्वक पूजा पाठ करते थे।
 

सर्व पितृ अमावस्या कथा Pitru Paksh ka mahatw serv pitra amavasya katha shraaddh tarpan rahasya

 
एक दिन की बात है। श्रावण की वर्षा ऋतु बीत चुकी थी और भाद्रपद मास चल रहा था। धनशर्मा श्राद्ध के लिए आवश्यक कुशा, पवित्र घास और अन्य सामग्री लेने पास के एक घने वन में गए। दोपहर का समय था और वन में दूर-दूर तक सन्नाटा पसरा था। केवल पत्तों की सरसराहट और कुछ पक्षियों की आवाजें सुनाई पड़ रही थी।
 
धन शर्मा मन ही मन मंत्रों का जाप करते हुए निर्भय भाव से जंगल में आगे बढ़ रहे थे। धनशर्मा वन में कुछ एकत्र कर ही रहे थे कि अचानक उनकी दृष्टि एक अद्भुत किंतु भयावह दृश्य पर पड़ी। सामने कुछ ही दूरी पर विशाल वृक्ष के नीचे तीन आकृतियां खड़ी थी।
 

पितृ पक्ष क्यों है विशेष? श्राद्ध और तर्पण का महत्व एक प्राचीन कथा से जानें श्राद्ध और तर्पण का रहस्य 

 
पहले तो धनशर्मा को विश्वास नहीं हुआ। वे तीन मानवाकृति जैसे प्राणी थे। परंतु उनके स्वरूप बड़े भयंकर थे। वे वास्तव में तीन प्रेत आत्मा थे जिनका रूप देखकर सामान्य मनुष्य भय से मूर्छित हो जाता। धनशर्मा ने उन प्रेतों को ध्यान से देखा। उनके केश बिखरे और सीधे ऊपर को खड़े थे। मानो वर्षों से संवारे ना गए हो। उनकी आंखें अंगारों जैसी लाल चमक रही थी। दांत काले और लंबे दिखाई दे रहे थे। नुकीले जैसे किसी जंगली पशु के हो।
 
तीनों के शरीर अत्यंत कृष और मरियल थे। पेट पीठ से लगा हुआ सिर्फ हड्डियों का ढांचा जैसे बचा हो। उनकी नसें उभरी हुई थी और वे पीड़ा से जान पड़ते थे।
 
धनशर्मा ने इतने भयानक प्राणियों को एक साथ पहले कभी नहीं देखा था। परंतु आश्चर्य की बात यह थी कि इतने भयंकर दृश्य के बावजूद धन शर्मा तनिक भी भयभीत नहीं हुए। उनके मन में ईश्वर का दृढ़ आश्रय था और सत्य पर दृढ़ता से अडिग विश्वास।
 
उन्होंने अपने भीतर साहस संजोया और आगे बढ़कर उन प्रेतों से बात करने का निश्चय किया। धनशर्मा धीमे कदमों से उनके निकट गए। तीनों प्रेतों ने भी उसे देखा और एक क्षण को मानो आश्चर्य से स्थिर हो गए कि एक साधारण मानव उनकी ओर निर्भय होकर आ रहा है।
 
धनशर्मा ने पूछा, तुम लोग कौन हो? तुम्हारी यह नारकीय अवस्था कैसे हुई? तुम्हें इस भयंकर योनि में कौन सा कर्म ले आया?
 

तीनो प्रेतों की व्यथा /श्राद्ध और तर्पण का महत्व Pitru Paksh ka mahatw serv pitra amavasya katha shraaddh tarpan rahasya

 
एक पल को तीनों प्रेत चुप रहे। उनके गले से मानो घुटी घुटी सी आवाज निकल रही थी। धन शर्मा ने अपना परिचय देते हुए कहा, “मैं एक ब्राह्मण हूं और भगवान विष्णु का दास हूं। मैं तुम लोगों को देखकर चिंतित हूं। मैं भय से व्याकुल और दुखी हूं।
 

सर्व पितृ अमावस्या कथा: कैसे श्राद्ध और दान से पूर्वजों को मिलता है मोक्ष

किंतु साथ ही मैं दया का पात्र भी हूं। मेरी रक्षा करो। अगर तुम लोग मुझ पर कृपा करोगे और मेरी रक्षा करोगे तो भगवान विष्णु तुमसे प्रसन्न होंगे और तुम सबका भी कल्याण करेंगे। धनशर्मा पूरी श्रद्धा से बोलते जा रहे थे। भगवान विष्णु बड़े दयालु हैं। वे ब्राह्मणों के हितैषी हैं। जो भी भक्तों पर दया करता है, विष्णु उस पर अनुग्रह करते हैं। श्री हरि की महिमा अपरंपार है। उनका श्याम वर्ण अलसी के फूल के समान नीला है। वे पीतांबर धारण करते हैं। उनके नाम के श्रवण मात्र से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। वे अनादि और अनंत हैं।
 
शंख, चक्र और गधा धारण करने वाले अविनाशी भगवान हैं। उनके नेत्र कमल के समान सुंदर हैं और वे प्रेत आत्माओं तक को मोक्ष प्रदान करने की शक्ति रखते हैं।
 
यमराज ने ब्राह्मण को कथा सुनाते हुए कहा हे ब्राह्मण जैसे ही धनशर्मा के मुख से भगवान विष्णु का पवित्र नाम निकला वैसे ही उन पिशाच रूपी प्रेतों के हृदय में आश्चर्यजनक परिवर्तन होने लगा। अब तक क्रोध और पीड़ा से भरे जो प्रेत धनशर्मा के सामने खड़े थे वे विष्णु नाम के प्रभाव से संतुष्ट और शांत होने लगे। उनके विकराल चेहरे के भाव बदल गए। जो आंखें क्रोध से लाल थी उनमें अब कोमलता झलकने लगी।
जो रूखे शरीर दया भाव से विहीन थे उनमें अब करुणा और उदारता का संचार होने लगा। वासुदेव श्री हरि के नाम मात्र से उनके हृदय पवित्र हो गए।
 

गरुड़ पुराण में वर्णित पितृ पक्ष की पावन कथा | श्राद्ध तर्पण का रहस्य

 
धनशर्मा के भक्ति भरे वचनों ने उन प्रेतों को अभिभूत कर दिया। धीरे-धीरे तीनों प्रेतों के चेहरे पर प्रसन्नता की छाया दिखाई देने लगी। ऐसा प्रतीत हुआ मानो एक ठंडी शांत लहर उन तप्त आत्माओं पर बह चली हो। फिर वे प्रेत मानवीय वाणी में बातें करने को उद्यत हुए।
 
उनमें से एक प्रेत ने कहा हे विप्र केवल तुम्हारे दर्शन मात्र से और भगवान श्री हरि का नाम सुनने से हमारे हृदय का भाव क्षर भर में बदल गया है। अभी कुछ पल पहले तक हम क्रोध, दुख और व्यथा की अग्नि में जल रहे थे। किंतु तुम्हारे आते ही हमारी अवस्था दूसरी हो गई है। अब हमारी वृत्ति में दया जाग उठी है। मन में शांति का अनुभव हो रहा है।
 
निसंदेह एक सच्चे वैष्णव पुरुष का समागम सारे पापों को दूर भगा देता है। तुम्हारे जैसे भक्त का संग जीवन में कल्याणकारी परिवर्तन लाता है और पाप के अंधकार को दूर करके यश व पुण्य का प्रकाश फैलाता है। तीनों प्रेतों ने धन शर्मा के प्रति कृतज्ञता से सिर झुकाया। फिर एक ने कहा हे ब्राह्मण देव तुमने हमारे प्रति दया दिखाई है। अतः हम अपना परिचय तुमसे छिपाना नहीं चाहेंगे।
 

पितृ पक्ष 2025: श्राद्ध और तर्पण की दिव्य कथा जो बदले जीवन की दिशा

 
हमारे इस भयंकर रूप और दुर्दशा का कारण जानकर ही तुम समझ सकोगे कि हम पर कैसी विपत्ति आई हुई है। सुनो, हम कौन हैं और हमें यह नारकीय अवस्था क्यों मिली? धन शर्मा ने ध्यान से उनकी ओर देखा और सिर हिलाकर सहमति जताई। तीनों प्रेत अब बारी-बारी से अपनी आप बीती सुनाने लगे।
 
पहला प्रेत आगे बढ़कर बोला, “मेरा नाम कृतज्ञ है क्योंकि पूर्व जन्म में मैं बड़ा कृतघ्न था। मैंने अपने माता-पिता तक का आदर नहीं किया। कभी उनके लिए श्राद्ध तर्पण नहीं किया। मैं सदा अपनों का उपकार भूलता रहा। गुरुजन और बड़ों का अनादर करता रहा। मेरी कृतघ्नता से मेरे पितृ गण भी मुझसे असंतुष्ट और क्रुद्ध रहे। इन्हीं पापों के फल स्वरूप मृत्यु के बाद मुझे कठोर दंड मिला और अंततः इस प्रेत योनि में भटकना पड़ा।
 
दूसरे प्रेत ने अपनी व्यथा सुनाई। मेरा नाम विदवत है। पूर्व जन्म में मैं हरिवीर नामक राजा था। पर घोर अभिमानी और नास्तिक होने के कारण अधर्म करता रहा। ना देव पूजन किया ना गुरु ब्राह्मणों का सम्मान या दान। मैं रोज बिना पूजा पाठ के भोजन करता और विद्वानों की निंदा करता था। मैंने अपने पितरों को भी कभी याद नहीं किया ना श्राद्ध तर्पण किया। इन पापों के कारण मौत के बाद नरक की यातनाएं भोगी और अंततः प्रेत योनि में आ गिरा। दूसरे प्रेत की कथा सुनकर धनशर्मा का हृदय द्रवित हो उठा।
 

पूर्वजों की आत्मा को शांति देने वाली कथा | पितृ पक्ष का असली महत्व

 
उन्होंने देखा कि विदवत की आंखों में पश्चाताप के आंसू भर आए। और उसका कृष शरीर थरथरा रहा था। अपने पिछले जन्म की गलतियों का एहसास उसे तड़पा रहा था।
 
तीसरा प्रेत आगे आया और बोला, “मैं वैष्णव नामक प्रेत हूं। मेरे पूर्व जन्म का नाम गौतम था और मैं मध्य देश का एक ब्राह्मण था। दुर्भाग्य से मैंने पितृ पक्ष में कभी कोई धर्म कर्म नहीं किया। भाद्रपद मास के श्राद्ध पक्ष में ना स्नान किया, ना दान, ना हवन या पूजापाठ। मैंने अपने पूर्वजों को तर्पण तक नहीं दिया। इस तरह पितरों की अवज्ञा करके मैंने अपने सारे पुण्य नष्ट कर डाले। फलतः मरने के बाद मेरी आत्मा इस प्रेत योनि में भटक रही है।
 
तीनों प्रेतों की करुण कथा सुनकर धन शर्मा की आंखें भर आई। एक ओर भयंकर रूप वाले यह प्रेत सामने खड़े थे। जिनसे कोई भी अनजान व्यक्ति डर जाता। परंतु धन शर्मा के मन में अब उनके प्रति भय के स्थान पर अपार दया उपजी। उन्होंने जाना कि इन सभी को अपने पापों और विशेषकर पूर्वजों की अवहेलना के कारण ऐसी यातना पूर्ण गति मिली है। तीनों ने अपने-अपने पितरों का निरादर किया था।
 
श्राद्ध तर्पण जैसे पवित्र कर्तव्यों से मुख मोड़ा था। उनके पूर्वजों की आत्माएं असंतुष्ट और दुखी रही। इसलिए मृत्यु के बाद इन्हें प्रेत योनि में भटकना पड़ा। कुछ देर सब चुप रहे।
 

पितृ पक्ष की कथा: कैसे धनशर्मा ने अपने पितरों को प्रेत योनि से मुक्त किया Pitru Paksh ka mahatw serv pitra amavasya katha shraaddh tarpan rahasya

 
वन की निस्तब्धता में केवल पत्तों की सरसराहट और दूर किसी पक्षी का स्वर सुनाई दे रहा था। अंततः धन शर्मा ने अपने आंसू पोंछे और बोले आप लोगों की दारुण कथा सुनकर मेरे हृदय में गहरी वेदना हो रही है। यह जानकर बड़ा दुख होता है कि धर्म से विमुख होने पर आत्मा को कितनी कष्टप्रद दशा से गुजरना पड़ता है। आपने अपना परिचय और अपने कष्ट मुझे बताएं। इसके लिए मैं कृतज्ञ हूं।
 
अब यह विनीत ब्राह्मण आपसे पूछता है कि मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं? मैं भगवान विष्णु का भक्त हूं। यदि मेरे द्वारा कोई सेवा हो सके तो कृपा करके बताइए। संभवतः ईश्वर ने ही मुझे यहां आपसे मिलवाया है ताकि मैं आप दुखियारों की कुछ सहायता कर सकूं। धन शर्मा की सहृदयता से प्रभावित होकर तीनों प्रेत एक दूसरे की ओर देखने लगे।
 
फिर तीसरे प्रेत गौतम ने आगे बढ़कर हाथ जोड़ते हुए कहा, हे सदाशय ब्राह्मण तुम्हारी दयालुता के लिए हम आभारी हैं। सच में हम चाहते हैं कि हमारा उद्धार हो जाए। इस यातना भरे प्रेत जीवन से हमें मुक्ति मिल जाए। परंतु हमारा पाप इतना भारी है कि अपने बल पर हम इससे छुटकारा नहीं पा सकते।
 

पितृ पक्ष और सर्व पितृ अमावस्या की प्राचीन कथा | श्राद्ध का महत्व Pitru Paksh ka mahatw serv pitra amavasya katha shraaddh tarpan rahasya

 
कुछ क्षण रुक कर प्रेत गौतम ने कहा मेरे पास एक उपाय है किंतु उसमें तुम्हारी सहायता चाहिए। सुनो मेरा एक पुत्र है जो पृथ्वी लोक पर अभी जीवित है। वह धर्मशील है और श्राद्ध आदि विधान को जानता है। यदि उसे हमारी इस दुर्दशा का पता चल जाए तो वह अवश्य हमारा उद्धार करने का प्रयास करेगा। मेरे उस पुत्र का नाम धनशर्मा है। हे स्वामिन तुम कृपा कर उसके पास जाकर हमारी यह दशा उसे बताना और समझाना कि हमारे लिए क्या करना आवश्यक है।
 

श्राद्ध और दान से उद्धार – पितृ पक्ष की कथा Pitru Paksh ka mahatw serv pitra amavasya katha shraaddh tarpan rahasya

हमारे लिए इतना परिश्रम कर दो परोपकार का फल यज्ञ दान और तप से भी बढ़कर होता है। मुझे विश्वास है मेरा पुत्र मेरा तारणहार बनेगा। किंतु किसी को तो उसे बताना होगा कि उसके पितरों की क्या अवस्था है। तुम विद्वान हो, कृपालु हो, मेरी बात अवश्य मानोगे। हमारा कार्य पूरा कर दो। धन शर्मा यह सब चुपचाप सुन रहे थे। जैसे ही प्रेत गौतम के मुख से उसके पुत्र का नाम निकला, धनशर्मा का हृदय जोर से धड़क उठा। उन्होंने पूछा, स्वामिन, क्या आपका पुत्र धनशर्मा ही है? प्रेत वैष्णव बोला, हां, मेरे पुत्र का यही नाम है। वह मेरा इकलौता पुत्र है।
 

श्राद्ध क्यों करें? पितृ पक्ष की अद्भुत कथा और यमराज का उपदेश

 
शायद अब तक मुझे भूल चुका होगा या उसे पता भी ना हो कि उसके पिता की आत्मा किस दुर्गति में भटक रही है। धनशर्मा से अब रहा ना गया। वो भाव विवल होकर प्रेत के चरणों में गिर पड़ा और रोते हुए बोला पिताजी मैं ही आपका पुत्र धन शर्मा हूं। मैं इतना अभागा हूं कि आपको पहचाना नहीं और आपके कष्ट दूर नहीं कर पाया। पुत्र होकर भी आपके काम ना आ सका। इससे बड़ा पाप कुछ नहीं। कृपा करके मुझे क्षमा करें।
 
यह सुनकर प्रेत गौतम की आंखों में भी आंसू भर आए। वो विस्मित और आनंदित होकर बोला, वत्स तुम सचमुच मेरे पुत्र हो। निश्चय ही भगवान ने तुम्हें हमारी मुक्ति का साधन बनाकर भेजा है। फिर गौतम ने गहरी सांस लेकर कहा, बेटा अब विलाप छोड़ो। ईश्वर की कृपा से तुम्हें हमारा उद्धार करना है।
 
मैं तुम्हें बताता हूं कि तुम्हें क्या करना चाहिए। प्रेत गौतम ने कहा, वत्स पितृ पक्ष की अमावस्या के दिन विधि पूर्वक श्राद्ध कर्म करना। पवित्र नदी में स्नान करके संकल्प लो। फिर हमारे नाम से पिंडदान और तिलांजलि अर्पित करना। आदर पूर्वक 10 ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन करवाना। विशेषतः मीठी खीर का प्रसाद देकर उन्हें तृप्त करना। अंत में श्रद्धा पूर्वक दान दक्षिणा देना। सात मिट्टी के घड़ों को स्वच्छ जल से भरकर पितरों के नाम पर दान करना। ऐसा करने से हमारी सात पीढ़ियों तक के पितृग तृप्त होकर मुक्त होंगे।
 

पितृ पक्ष की दिव्य कथा: श्राद्ध, तर्पण और दान से मिलता है पूर्वजों का आशीर्वाद Pitru Paksh ka mahatw serv pitra amavasya katha shraaddh tarpan rahasya

 
अपने सामर्थ्य अनुसार गौ दान, अन्नदान तथा वस्त्रादि दान भी करना जिससे तुम्हारा पुण्य बढ़ेगा और हमारी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा। धनशर्मा ने सिर झुकाकर कहा पिताजी आपकी आज्ञा अनुसार मैं पूरा प्रयास करूंगा। आपकी कृपा से अवश्य सफलता मिलेगी।
 
धनशर्मा ने तीनों प्रेतों की ओर कर्तव्य भाव से देखा। उन्होंने हाथ जोड़कर अपने पिता तथा दोनों अन्य प्रेतों को प्रणाम किया और दृढ़ स्वर में कहा, मैं अभी जाता हूं और पूरी तैयारी करता हूं। अगली अमावस्या आने ही वाली है। मैं श्राद्ध कर्म में कोई कसर नहीं छोडूंगा। आप सब अपनी कृपा बनाए रखें और मुझे आशीर्वाद दें कि मैं सफल हूं।
 
धनशर्मा ने तुरंत अपने घर लौटकर श्राद्ध की तैयारी शुरू कर दी। नियत तिथि आने पर पितृ पक्ष की अमावस्या की शुभ सुबह वे पवित्र नदी में स्नान करके सूर्य को अर्घ्य तथा पितरों के लिए तिलांजलि अर्पित कराए। फिर घर पर विधि विधान से श्राद्ध कर्म किया। उन्होंने अपने पिता पितामह आदि पितरों के निमित्त श्रद्धा पूर्वक पिंडदान किया और जल तर्पण दिया। इसके बाद आदर पूर्वक 10 ब्राह्मणों को खीर समेत पौष्टिक भोजन कराया तथा दक्षिणा प्रदान की।
 

पितृ पक्ष को नज़रअंदाज़ करना घातक भूल | सर्व पितृ अमावस्या कथा

 
अंत में साथ मिट्टी के घरे पानी से भरकर पितरों के नाम पर दान दिए। साथ ही आवश्यक वस्तुओं का दान दक्षिणा भी किया। धनशर्मा ने पूरे मनोयोग से प्रार्थना की कि उसके पितृग तृप्त हो और उन्हें मुक्ति प्राप्त हो। श्राद्ध कर्म संपन्न होने के बाद धनशर्मा के मन में आशा की एक किरण जागी कि अब उन प्रेतात्माओं को शांति मिल जाएगी।
 
उसी संध्या काल वह पुनः उस घने वन की ओर चल पड़े जहां उसकी भेंट उन तीन प्रेतों से हुई थी। उस संध्या धनशर्मा फिर उसी स्थान पर पहुंचे। उन्होंने देखा कि जिस पुराने वृक्ष के नीचे कल तक तीन भयानक प्रेत खड़े थे, वहां अब दिव्य प्रकाश ढैला हुआ है।
 
उन प्रेतों के स्थान पर तीन दिव्य पुरुष खड़े थे। उनके चेहरे तेजस्वी और प्रसन्न थे। शरीर पर उजले रेशमी वस्त्र थे और गले में फूलों की मालाएं झूल रही थी। धनशर्मा तुरंत समझ गए यह वही तीन आत्माएं हैं लेकिन अब प्रेत योनि के बंधन से मुक्त होकर दिव्य रूप में प्रकट हुई हैं। धनशर्मा भाव विभोर होकर निकट आए और हाथ जोड़ दिए। सबसे आगे स्वयं उनके पिता गौतम खड़े थे। जिनका रूप अब अत्यंत शांत और सौम्य था। गौतम ने प्रेम पूर्वक हाथ बढ़ाकर पुत्र के सिर पर आशीष रखा। धनशर्मा आनंद से उनके चरणों में झुक गए।
 

पूर्वजों की आत्मा को शांति देने वाली यह दिव्य कहानी Pitru Paksh ka mahatw serv pitra amavasya katha shraaddh tarpan rahasya

 
गौतम ने स्नेह पूर्वक अपने पुत्र को उठाकर हृदय से लगाया। दोनों की आंखों से कृतज्ञता और हर्ष के आंसू बह निकले। गौतम ने प्रसन्न होकर कहा पुत्र धनशर्मा तुम्हारी श्रद्धा और सेवा से हम सबको मुक्ति मिल गई है। अब हम पितृ लोक को जा रहे हैं। हमारे आशीर्वाद से तुम सदैव सुखी रहो। दीर्घायु और यशस्वी बनो
 
दूसरे और तीसरे दिव्य पुरुष हरिवीर और सुदास ने भी कृतज्ञता पूर्वक धनशर्मा को आशीर्वाद दिया। उन्होंने स्वीकार किया कि धनशर्मा के पुण्य से उन्हें भी प्रेत योनि से छुटकारा मिला है। दोनों ने उसे सुख समृद्धि और यश प्राप्ति का आशीष दिया।
 
इतने में आकाश से एक अलौकिक रथ अवतरित हुआ जो प्रकाश से दमक रहा था। यमदूतों और विष्णु दूतों जैसे दिव्य सहायकों ने प्रकट होकर उन मुक्त आत्माओं का स्वागत किया। तीनों दिव्य पुरखे उस रथ पर सवार हो गए। विदा लेते समय गौतम ने प्रेम भरी दृष्टि से पुत्र की ओर देखा और हाथ हिलाकर आशीर्वाद दिया।
 

पूर्वजों की आत्मा को शांति देने वाली यह दिव्य कहानी

 
धनशर्मा की आंखों से आनंद के आंसू बह रहे थे और हृदय में अपने पितरों के प्रति श्रद्धा व प्रभु के प्रति धन्यवाद के भाव उमड़ रहे थे। कुछ ही पलों में वह दिव्य रथ आकाश मार्ग से प्रस्थान कर गया और आंखों से ओझल हो गया। संध्या का स्वर्णिम प्रकाश धीरे-धीरे मध्यम पड़ गया।
 
धनशर्मा देर तक उस ओर निहारते रहे जहां उनके पूर्वज अंतर्धान हुए थे। उनके मन में अपार शांति थी। उन्होंने ईश्वर को प्रणाम किया और घर लौट आए। तभी यमराज की आवाज फिर सुनाई दी। इस प्रकार हे ब्राह्मण धन शर्मा ने अपने पिता सहित तीन पितृ शापित आत्माओं का उद्धार कर दिया। श्राद्ध, तर्पण और दान की महिमा से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिली और पितृक में स्थान प्राप्त हुआ।
 
ब्राह्मण ने हाथ जोड़कर कृतज्ञता पूर्वक कहा, धर्मराज इस अद्भुत कथा ने मेरी आंखें खोल दी। अब मैं भली-भांति समझ गया हूं कि पितृ पक्ष में श्राद्ध तर्पण करना कितना आवश्यक है। मैं वचन देता हूं कि अपने पितरों के प्रति कभी उदासीन नहीं रहूंगा और सदैव श्रद्धा से उनका श्राद्ध करूंगा। यमराज ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया।
 
तथास्तु जो भी इस कथा को सुनकर पितृ कर्म में प्रवृत्त होगा उसके पितर अवश्य प्रसन्न होंगे और उसे सुख समृद्धि का आशीर्वाद देंगे। इसके साथ ही धर्मराज यम अंतर्धान हो गए। इस प्रकार पितृ पक्ष की यह पावन कथा समाप्त होती है। इससे हमें शिक्षा मिलती है कि अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करना अत्यंत आवश्यक है।
 

शिक्षा और संदेश – Pitru Paksh ka mahatw serv pitra amavasya katha shraaddh tarpan rahasya

पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूर्वजों का सम्मान करके विधि पूर्वक श्राद्ध तर्पण व दान करके ना केवल उनकी आत्माओं को शांति मिलती है बल्कि उनकी प्रसन्नता से हमारे जीवन की बाधाएं भी दूर होती हैं और कुल का कल्याण होता है। हर वर्ष आने वाला पितृ पक्ष हमें याद दिलाता है कि हमारे अस्तित्व की जड़े हमारे पूर्वजों में हैं। उनकी आत्मिक शांति के लिए किया गया छोटा सा प्रयास भी हमारे लिए अनंत पुण्य और आशीर्वाद लेकर आता है।
 
अतः सच्चे हृदय से पितृ ऋण उतारने का प्रयत्न करना चाहिए। आशा है आपको यह पौराणिक कथा रोचक और हृदय स्पर्शी लगी होगी। अब जब भी पितृ पक्ष का समय आएगा आप इस कथा को स्मरण करके अपने पूर्वजों की सेवा में तन मन धन से जुटेंगे। शास्त्रों में सत्य ही कहा गया है। पितृ देवो भव अर्थात पितरों को देव तुल्य मानकर उनका आदर करें और पूजा अर्चना करें। इन्हीं भावनाओं के साथ अपने सभी पूर्वजों की पुण्य स्मृति को प्रणाम करते हुए हम अपनी वाणी को विराम देते हैं।
 
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल 
 
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