Vinayak Damodar Veer Savarkar ke Prernadayak Vachan

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Vinayak Damodar Veer Savarkar ke Prernadayak Vachan

1- महानतम लक्ष्य के लिए किया जाने वाला कोई भी बलिदान, व्यर्थ नहीं होता है|

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2- उन्हें शिवाजी को मानने का हक़ है, जो शिवाजी के जैसे, अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र कराने के लिए, लड़ने के लिए तैयार हैं|
3- पतितों को परमात्मा के दर्शन उपलब्ध हों, चूंकि प्रभु पतित पावन जो है| यही तो हमारे शास्त्रों का सार है| भगवान के दर्शन करने की अछूतों की माँग, जिस मनुष्य को बहुत बड़ी दिखाई देती है| असल में वह मनुष्य खुद अछूत है और पतित भी है, उसे भले ही चारों वेद ही याद क्यों न हो|
4- कर्तव्य की निष्ठा, मुश्किलों का सामना करने में, दुःख उठाने में और जिन्दगी भर संघर्ष करने में ही समाविष्ट है| यश-अपयश तो सिर्फ योग की बातें हैं|
5- जगत को यदि हिंदू जाति का आदेश सुनना पड़े, ऐसी स्थिति में, उनका वह आदेश, भगवतगीता और भगवान गौतम बुद्ध के आदेशों से अलग नहीं होगा|” दुःख ही तो वह चाकशक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखता है और उसे आगे बढ़ाता है “
6- सभी को समान करने की ताकत रखने वालों में ही मैत्री सम्भव है|
7- प्रतिशोध की भठ्ठी को तपाने के लिए अन्याय और खिलाफत का ईंधन अपेक्षित होता है, तभी तो उसमें से सद्गुणों के कण चमकने लगते हैं| इसकी प्रमुख वजह है कि, हर एक वस्तु अपने विरोधी तत्व से रगड़ खाकर ही, स्फुलित हो उठती है|
8- ज्ञान-प्राप्ति पर किया गया कर्म सफलतादाई होता है, क्योंकि ज्ञान-युक्त कर्म ही समाज के लिए हितकारी है ज्ञान प्राप्त करना जितना मुश्किल है, उससे ज्यादा मुश्किल है, उसे सम्भाल कर रख पाना| इंसान कोई भी मजबूत कदम नहीं उठा सकता यदि उसमें राजनीतिक, अर्थशास्त्रीय, ऐतिहासिक व शासन शास्त्रीय ज्ञान का अभाव हो|
9- समय से पहले किसी को मृत्यु प्राप्त नहीं होती और जब समय आ जाता है, तो कोई अर्थात कोई भी इससे बच नहीं सकता है| लाखों लोग रोग से ही मर जाते हैं| लेकिन धर्मयुद्ध में जो मृत्यु हासिल करते हैं, उनके लिए तो अनुपम सौभाग्य की बात है| ये लोग पुण्य-आत्मा ही होते हैं|
10- व्यक्ति की पूर्ण ताकत का मूल, उसके स्वयं की अनुभूति में ही विद्यमान है|
11- मन, विधाता द्वारा मनुष्य-जाति को प्रदान किया गया एक ऐसा उपहार है, जो इंसान की परिवर्तनशील जिन्दगी की स्थितियों के अनुरूप, खुद अपना रूप और आकार भी परिवर्तित कर लेता है|
12- भारत हिंदू-जाति की गृहस्थली है, गोद में जिसके महापुरूष, देवी-देवता अवतार, और देवजन खेले हैं| ये ही हमारी पितृ भूमि और पुण्य भूमि है। यही हमारी कर्म भूमि है और इससे हमारी वंशगत और सांस्कृतिक आत्मीयता के रिश्ते जुड़े हैं|
13- परतन्त्रता तथा गुलामी को हर धर्म ने सदैव धिक्कारा है| धर्म के उच्छेद और परमात्मा की इच्छा के खण्डन को ही परतन्त्रता कहते हैं| सभी परतंत्रता में सबसे नीचे राजनीतिक परतंत्रता है, यही नर्क का दरवाजा है|
14- हिंदू-धर्म कोई ताड़ पत्र पर अंकित पोथी नहीं है, जो ताड़ पत्र के चटकते ही चूर-चूर हो जायेगा| आज पैदा होकर कल ख़त्म हो जायेगा| ये कोई राउंड टेबल परिषद का प्रस्ताव भी नहीं है, ये तो एक महान जाति का जीवन है| ये मात्र एक शब्द-भर नहीं, बल्कि सम्पूर्ण इतिहास है| ज्यादा न तो 40 सहस्त्राब्दियों का इतिहास इसमें भरा पड़ा है|
15- स्वदेश की, अपने राष्ट्र की, अपने समाज की आजादी के लिए ईश्वर से की गई मूक प्रार्थना भी, सबसे बड़ी अहिंसा की निशानी है|
16- सम्राट अशोक जब तक क्षत्रिय हिन्दू था, तब 252 ईशापूर्व तक उसकी फ़ौज अजेय थी, लेकिन बौद्ध धर्म की दीक्षा लेते ही, उसकी पूरी ताकत धराशायी हो गई|

17- अस्पृश्यता, हमारे समाज और राष्ट्र के मस्तक पर एक कलंक है| राष्ट्र के हिंदू समाज के करोड़ों हिंदू भाई इससे शापित हैं| जब तक हम ऐसे बने रहेंगे, तब तक हमारे दुश्मन हमें आपस में लड़वाकर, विभाजित करके कामयाब होते रहेंगे| इस भयंकर बुराई को हमें त्यागना ही होगा|
18- जिस देश में शक्ति का महत्व नहीं, शक्ति की आराधना नहीं, उस देश की प्रतिष्ठा की कीमत कौड़ी भर है|
19- भारत की आजादी का पूरा श्रेय, अहिंसा को जो देते हैं, वे कपटी, पक्षपाती और झूठे हैं| भारत की आजादी में किसी एक नेता अथवा दल की भूमिका नहीं बल्कि पिछले 3 पीढ़ीयों की सामूहिक कोशिश थी जिसमें 1857 की क्रान्ति भी शुमार है| हमें देश की आजादी के लिए गरमपंथी और नरमपंथी दोनों विचारधाराओं के स्वतंत्रता-सेनानियों के लिए कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए|


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