Lauh Purush Sardar Vallabh Bhai Patel ke Suvichar

Lauh Purush Sardar Vallabh Bhai Patel ke Suvichar

1- अविश्वास डर की मुख्य वजह होती है|

2- निर्धनों की सेवा ही भगवान की सेवा है|

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3- प्रजा का भरोसा, राज्य की निर्भयता का संकेत है|

4- बोलने में मर्यादा नही तोड़ना, गालियाँ देने का काम तो कायरों है|

5- अपना अपमान सहने की कला, आपके भीतर होनी चाहिए|

6- यश-सम्मान योग्यता के अनुरूप प्राप्त होते हैं|

7- मुश्किल वक़्त में कायर मनुष्य बहाना खोजते हैं तो वहीं, वीर इंसान रास्ता खोजते हैं|

8- सेवाधर्म अत्यंत ही दुर्लभ है, ये तो दुर्गम काँटों की सेज पर लेटने के समान है|

9- सच्चाई के रास्ते पर चलने के लिए, बुरे का त्याग जरूरी है| चरित्र-सुधार बहुत जरूरी है|

10- देश में हमारे कई धर्म, कई भाषाएँ भी हैं परन्तु हमारी संस्कृति एक है|

11- अधिक बोलने में कोई लाभ नही होता है “

12- हमें धर्म-जाति, ऊँच-नीच, अमीर-गरीब के भेदभावों को, आज ख़त्म कर देना चाहिए|

13- सेवा करने वाले व्यक्ति को विनम्रता सीखनी चाहिए| वर्दी धारण करके अभिमान नहीं, विनम्रता होनी चाहिए|

14- तलवार चलाना जानते हुए भी जो मनुष्य तलवार को म्यान में रखते हैं, इसको ही सच्ची अहिंसा कहते है “

15- जान लेने का अधिकार सिर्फ प्रभु के पास है| सरकार की तोपें या बन्दूकें हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकतीं| हमारा कवच निर्भयता ही है|

16- एकता बगैर जनशक्ति, शक्ति नहीं है| जबतक उसे अच्छी तरह से सामंजस्य में ना लाया जाए और एकजुट ना किया जाए|

17- कर्तव्यनिष्ठ इंसान कभी निराश नहीं होता| इसलिए जब तक जीवन है, कर्तव्य करते रहें, तो इसमें भरपूर आनन्द मिलेगा|

18- एक ही इच्छा है मेरी कि, भारत एक बेहतरीन उत्पादक राष्ट्र हो और इस देश में कोई अनाज के लिए आँसू बहाता हुआ, भूखा ना रहे|

19- मेरे राष्ट्र की माटी में कुछ अलग ही बात है, जो इतनी मुश्किलों के बावजूद भी महान-आत्माओं की धरा रही है|

20- आजादी हासिल होने के बाद भी, अगर गुलामी की दुर्गन्ध आती रहे, तो आजादी की खुशबु नहीं फैल सकती|

21- कोई भी देश या जाति सिर्फ तलवार से बहादुर नहीं बनती| रक्षा के लिए तलवार तो जरूरी है, लेकिन देश की प्रगति को तो, उसकी नैतिकता से ही मापा जा सकता है|

22- संस्कृति सोच समझकर शान्ति पर रची गई है| अगर मरना होगा, तो वे अपने पापों से मर जायेंगे| जो काम, प्यार और शान्ति से हो जाता है, वह शत्रु भाव से नहीं होता “

23- त्याग की कीमत का पता तब ही चलता है, जब अपनी कोई कीमती वस्तु छोड़नी पड़ती है| कभी त्याग जिसने न किया हो, वो इसकी कीमत क्या जानेगा|

24- जबतक हमारा अन्तिम लक्ष्य हासिल न हो जाए तबतक ज्यादा कष्ट सह लेने की ताकत हमारे भीतर आये, यही सच्ची जीत है|

25- किसी सिस्टम या संस्था की पुनः निन्दा की जाए तो, वह ढीठ बन जाता है और फिर सुधरने की बजाय, निन्दक की ही निन्दा करने लग जाता है|

26- जो व्यक्ति सम्मान के योग्य होता है, उसे हर स्थान सम्मान हासिल होता है परन्तु अपने जन्म-स्थान पर उसके लिए सम्मान प्राप्त करना मुश्किल ही है|

27- मानसिक और शारीरिक शिक्षा साथ–साथ दी जानी चाहिए| ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिसमे शिक्षा इस तरह की हो, जो विद्यार्थी के मन का, शरीर का, और आत्मा का विकास करे|

28- थका मनुष्य दौड़ने लगे तो कहीं पर पहुँचने के बजाय जान गवां बैठता है| ऐसे वक़्त पर आराम करना और आगे बढ़ने की शक्ति जुटाना उसका धर्म बन जाता है|

29- निस्संदेह, कर्म पूजा है किन्तु हास्य जिन्दगी है| जो कोई भी अपनी जिन्दगी को बहुत गम्भीरता से लेता है, उसे एक तुच्छ जिन्दगी हेतू तैयार रहना चाहिए| सुख और दुःख का जो समान रूप से स्वागत करता है, असल में वही सबसे अच्छी तरह से जीवन जीता है|

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