Draupadi Murmu Biography in Hindi द्रौपदी मुर्मू की सफलता

Draupadi Murmu Biography in Hindi द्रौपदी मुर्मू की सफलता

जो सुबह साढ़े तीन बजे नींद ख़त्म कर देती हैं| जिन्होंने महज चार सालों के भीतर परिवार के तीन लोगों की मौत को देखा| वो मौते इनके दो बेटों और पति की रहीं | शिव बाबा का ध्यान करके ये डिप्रेशन वाले हालातों से बाहर आईं |

सुबह साढ़े तीन बजे क्यों उठ जाती हैं, क्या करती हैं ?

कौन हैं द्रौपदी मुर्मू जिनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलू जिसे अभी आपने नहीं जाना है तो जरूर जान लें | ये सारी बातें अपने इस आर्टिकल में बताने जा रहें, कृपया सम्पूर्ण आर्टिकल जरूर पढ़ियेगा | आज बतायेंगे आपको द्रौपदी मुर्मू की कहानी जो एक बहुत छोटे घर से शुरू होकर अब राष्ट्रपति भवन तक पहुँच गई है |

द्रौपदी मुर्मू भाजपा की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन एन डी ए की तरफ से देश की उड़ीसा से बनने वाली दूसरी राष्ट्रपति हैं| मुर्मू जी से पहले उड़ीसा से वी वी गिरी भारत के चौथे राष्ट्रपति बन चुके हैं|

आज जब हम द्रौपदी मुर्मू के बारे में चर्चा कर रहें हैं तो उनके पारिवारिक जीवन पर नजर डालें तो द्रौपदी मुर्मू ने असंख्य परेशानियों को मात दिया है | एक महिला होते हुए द्रौपदी मुर्मू की जिंदगी को आसान बिलकुल नहीं कहा जा सकता है |

द्रौपदी मुर्मू का जन्म हुआ 20 जून 1958को| मयुरभंज जिले के ऊपरबेड़ा गाँव के किसी व्यक्ति को अंदाजा भी नहीं रहा की द्रौपदी मुर्मू असाधारण प्रतिभा की धनी निकलेगी |

इनके पिताजी एक संथाल आदिवासी परिवार से तालुकात रखते थे| यानि द्रौपदी मुर्मू का सम्बन्ध एक आदिवासी परिवार से है| 

शादी के कुछ दिन बाद ही इन्होने अपने दोनों बेटों और पति को खो दिया| परिवार में कोई बचा तो ये और इनकी बेटी| घर चलाने और बेटी को पढ़ाने की जिम्मेदारी आई तो द्रौपदी मुर्मू ने एक टीचर के तौर पर अपने करियर को शुरू करने का फैसला लिया |

उड़ीसा के सिचाईं विभाग में क्लर्क की नौकरी भी करी है | बेटों को खो देने के बाद इन्होने अपनी बेटी को सैलरी से मिलने वाले पैसों से पढ़ाया लिखाया और इस काबिल बनाया की इनकी बेटी समाज में एक जाना माना नाम हो सके |

इनकी बेटी का इति मुर्मू | बेटी ने पढ़ाई पूरी करते ही एक बैंक में जॉब शुरू कर दी | इति मुर्मू रांची में रहती हैं और झारखण्ड निवासी गणेश से विवाह कर चुकी हैं | इति के एक बेटी है जिसका नाम है आत्या श्री |

द्रौपदी मुर्मू ने अपने जीवन में कई मुश्किलों का सामना किया लेकिन लेकिन हार न मानकर सभी बाधाओं को चित कर दिया| इन्होने रामादेवी महिला कॉलेज से आर्ट में स्नातक की डिग्री प्राप्त की |

द्रौपदी मुर्मू का राजनैतिक करियर –

इनके राजनितिक सफ़र के बात करें तो इन्होने सन 1997 में ओड़िसा के ही राईरंगपुर नगर पंचायत क्षेत्र से एक पार्षद के तौर पर अपने राजनैतिक सफ़र की शुरुवात करी | आगे चलकर साल 2000 में ही इन्हें ओड़िसा सरकार में मंत्री बना दिया गया| द्रौपदी मुर्मू रायरंगपुर विधान सभा क्षेत्र से दो बार विधायक भी बन चुकी है|

ये साल 2009 में उस समय भी अपनी सीट से विजेता बनी जब BJD पार्टी ने उड़ीसा चुनाव से पहले ही बीजेपी से अपना रिश्ता तोड़ लिया था | इनको साल 2007 में उड़ीसा विधानसभा ने साल की सर्वश्रेष्ठ विधायक बनने के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था |

इनके पास परिवहन, वाणिज्य, पशुपालन और मत्स्य पालन जैसे मंत्रालयों की जिम्मेदारी सँभालने का अच्छा खासा अनुभव है | साल 2013 में द्रौपदी मुर्मू को भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य भी बनाया गया था |

द्रौपदी मुर्मू के पास झारखण्ड से पहली महिला राज्यपाल बनने का गौरव हासिल है | ये पहली दफा नहीं है द्रौपदी मुर्मू का नाम राष्ट्रपति पद के लिए सामने आया हो | द्रौपदी पिछली बार भी राष्ट्रपति चुनाव की दावेदार थीं | इसके पीछे इनके कार्यों और इनकी सादगी का तर्क दिया जा रहा था | हालाँकि बाद में NDA ने रामनाथ कोविंद को अपना प्रत्याशी चुन लिया था |

ओड़िसा की राजधानी भुवनेश्वर से तक़रीबन 300 किलोमीटर दूर मयूरभंज जिले का एक आदिवासी इलाका | आज यहाँ बुनियादी आवश्यकताओं के लगभग सभी संसाधन उपलब्ध हैं | लेकिन जरा सोचिये आज से 6 दशक पहले की | मुख्य धारा से अलग इस गाँव की शहर तक पहुँच कितनी कठिन रही होगी | 

इस गाँव में किसी ने भी कल्पना नहीं करी होगी की एक दिन इस गाँव की बेटी देश के सबसे ऊंचे राष्ट्रपति पद पर विराजमान हो जाएगी | अपने दूरदर्शी नेतृत्व, शानदार व्यक्तित्व और  समाज सेवा के माध्यम से ये सिद्ध कर दिया की कितनी भी मुश्किल परिस्थितियाँ क्यों न हो महिला की नियति घर के चार दिवारी के एक मूक प्राणी की नहीं है |

आज द्रौपदी मुर्मू किसी पहचान की मोहताज नहीं है | आज ये भारत की राष्ट्रपति बन चुकी हैं | इनका जीवन करोड़ो लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो मुश्किलों से हारकर अपना हथियार रख देते हैं |

आज भी मयूर गंज के उस छोटे से गाँव में द्रौपदी के परिवार वाले रहते हैं| आज भी इनके परिजनों का यकीन कर पाना मुश्किल है की इस बेटी का संघर्ष आज करोड़ों भारतीयों के लिए प्रेरणादायक बन चुका है |

द्रौपदी मुर्मू का पढ़ाई लिखाई का बचपन से ही बेहद शौक था | गाँव के ही प्राथमिक स्कूल से इन्होने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की | इस स्कूल में पढ़ने वाले हर बच्चे और पढ़ाने वाले हर अध्यापकों के मन में अपने विद्यार्थी रही द्रौपदी मुर्मू को लेकर गौरव की अनुभूति है |

द्रौपदी मुर्मू ने गाँव में प्राथमिक शिक्षा तो प्राप्त कर ली लेकिन फिर सवाल आया की माध्यमिक शिक्षा कैसे ग्रहण की जाये |

गाँव में या गाँव के समीप कोई विकल्प मौजूद नहीं था | फिर क्या हुआ एक दिन गाँव कुछ ऑफिसर और नेता पहुँचे| आगे के अध्ययन के निर्भीकता से द्रौपदी मुर्मू ने, अपने सवाल का उत्तर सीधे उन्ही से माँगा | उन लोगों ने भी द्रौपदी मुर्मू में छिपी प्रतिभा को पहचान लिया और उन्हें दाखिले के लिए भेज दिया गया – भुवनेश्वर|

एक दुर्गम आदिवासी क्षेत्र से निकलकर अब द्रौपदी मुर्मू सीधे पहुँच गई प्रदेश की राजधानी भुवनेश्वर| द्रौपदी मुर्मू ने अपनी माध्यम शिक्षा यही गर्ल्स हाई स्कूल से प्राप्त की| स्कूल में इनकी पहचान एक ऐसी छात्रा के तौर पर रही जो हर वक़्त लोगों की सहायता करने को तैयार रहती थी |

ये माध्यमिक की पढ़ाई के दौरान ही समझ चुकी थीं की जीवन में उजाला तभी लाया जा सकता है जब उसे शिक्षा से रोशन किया जाए | माध्यम शिक्षा के बाद इन्होने और आगे पढ़ने का फैसला लिया | 

उच्च शिक्षा बेहतरीन भविष्य का रास्ता बनाती है | इन्होने रामादेवी महिला कॉलेज से स्नातक की शिक्षा ( 1975-1979) हासिल की| यहीं से इन्होने देश और दुनिया के बारे में जाना | रामादेवी कॉलेज आज रामदेवी विश्वविद्यालय बन चुका है| 1975 से 1979 तक द्रौपदी मुर्मू ने रामादेवी विमेंस कॉलेज में पढ़ाई की | उन दिनों कॉलेज में भी वो अपनी सादगी के लिए जानी जाती थीं |

अपने कॉलेज के दिनों ये अपने कॉलेज के ही नजदीक SC/ST छात्रावास में रहा करती थीं| आज इस छात्रावास में रहने वाली छात्राओं के भीतर एक आत्मविश्वास नजर आ रहा है | इनका विवाह श्यामचरण मुर्मू से हुआ जो बैंक में नौकरी करते थे | उनके दो बेटे, एक बेटी हुई |

परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए इन्होने अपनी नौकरी छोड़ दी | द्रौपदी मुर्मू के पति को नब्बे के दशक के शुरुवात में मयुरभंज के राईरंगपुर में ही तैनाती मिली | 

द्रौपदी मुर्मू के मन में समाज के लिए कुछ करने की ललक विद्यमान थी | और राय रंगपुर के एक स्कूल में बिना वेतन पढ़ाने का निर्णय लिया | द्रौपदी मुर्मू को बच्चों को पढ़ाना बेहद पसंद था| स्कूल में बच्चों को पढ़ाने की लगन देखकर वो लोगों की नजरों में आईं |

समझो तो यहीं से इनके राजनैतिक करियर की नींव भी पड़ी |क्योंकि यहीं से उन्हें प्रेरणा मिली की राजनीति में आकर समाज के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है |

राजनैतिक कैरियर की शुरुआत 

साल 1997 में शहर में नगर पंचायत चुनाव नजदीक था | बीजेपी से जुड़े नेताओं ने उनसे वार्ड नंबर दो से काउंसलर के रूप में चुनाव में उतरने का आग्रह किया| शुरुवाती दौर में इनके भीतर हिचकिचाहट थी लेकिन बाद में ये राजी हो गईं | चुनाव जीतकर ये राईरंगपुर नगर पंचायत की उपाध्यक्ष बन गईं | विधायक राज किशोर दास उस समय नगर पंचायत अध्यक्ष थे |

नगर पंचायत में किये गए काम का ही परिणाम था की सन 2000 में बारहवीं विधानसभा इलेक्शन में भाजपा के तरफ से प्रत्याशी बनाया गया|  द्रौपदी मुर्मू आत्मविश्वास से भरी हुईं थीं | अपने परिवार के अलावा समाज को भी देना चाहती थीं | इनकी लोकप्रियता इतनी ज्यादा थी वो इस चुनाव में भारी मतों से विजयी हुईं |

और जल्दी ही इन्हें ओड़िसा सरकार में मंत्री बना दिया गया| 

ओड़िसा प्रदेश की सरकार में द्रौपदी मुर्मू के काम 

चुनाव जीतने के बाद इन्हें वाणिज्य और परिवहन विभाग में बतौर स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री के तौर पर नियुक्त किया गया| जिसे इन्होने अच्छी तरीके से निभाया भी | हालाँकि तेरहवीं विधानसभा के दौरान साल 2004 में ये मंत्री नहीं बन पाईं | लेकिन विधानसभा की स्थाई समिति की अध्यक्ष और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति सम्बंधित कई समितियों की सदस्य भी रहीं |

विधानसभा में भी इनकी सूझ बूझ और लगन एक मिशाल बन गई | साल 2007 में इन्हें ओड़िसा विधानसभा में सर्वश्रेष्ठ कामकाज के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सुशोभित किया गया | 

साल 2009 में हुए विधान सभा चुनाव में भाजपा और बी जे डी का गठबंधन ख़त्म हो चुका था | और इस वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में द्रौपदी मुर्मू का पराजय का मुंह देखना पड़ा | एक बार फिर ये अपने गृह जनपद राईरंगपुर लौट आईं | हालंकि इन्हें संगठन को जिले में मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी | 

साल 2010 में इन्हें मयुरभंज जिले के भाजपा अध्यक्ष भी बना दिया गया| 

ये समाज के वंचित तबको की अस्मिता, उनके अधिकारों और मुद्दों के लेकर हमेशा खड़ीं होती आई हैं | 

इनकी जिन्दगी में एक दौर ऐसा भी आया है जिसने इनको पूरी तरह से तोड़कर रख दिया था | साल 2010 से 2014 के बीच हुए हादसों में इनके दो बेटे काल के गाल में समा गए | इनके पति भी बेटों को खोने का गम न सह सके और उनका भी बिमारी के कारण मृत्यु हो गई |

ये वो समय था जब द्रौपदी मुर्मू बहुत ज्यादा तनाव और अवसाद में जीवन गुजारा |अपने परिवार से एक के बाद एक सदस्य को खोना किसी भी इंसान के वज्रपात से कम नहीं होता है | और इसी सब के चलते द्रौपदी मुर्मू ने खुद को अध्यात्म के साथ जोड़ लिया | साथ ही समाज सेवा में और अधिक तत्परता से लग गईं | अध्यात्म ने इनके मन को मजबूत बना दिया | अब द्रौपदी मुर्मू ने जिन्दगी के उतार चढ़ाव के बीच सामंजस्य बना लिया| 

साल 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनी | और जल्द ही साल 2015 में इन्हें झारखण्ड के राज्यपाल की जिम्मेदारी दे दी गई |

द्रौपदी मुर्मू में भारतीय संस्कृति, संस्कार समाज सेवा का जूनून गहराई से बसा हुआ है | जब ये झारखण्ड के राजभवन पहुँची तो इनके कार्य व्यवहार ने  न सिर्फ राजभवन के कर्मचारियों का बल्कि पूरे झारखण्ड वासियों का दिल जीत लिया|

हमारे देश में चरखे को आर्थिक स्वावलंबन का प्रतीक माना जाता है| झारखण्ड के राज भवन में लगा चरखा, द्रौपदी मुर्मू की निशानी के रूप में हमेशा रहेगा | इसके निर्माण के पीछे द्रौपदी मुर्मू की सोच थी की राजभवन घूमने आने वाला हर इंसान चरखे से आत्म निर्भरता की प्रेरणा ले सकेगा | इसके साथ ही इन्होने राजभवन में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई करने वाले और आदिवासी समाज से सम्बन्ध रखने वाले शहीदों की मूर्तियाँ भी लगवाने की शुरुवात करी |

सिर्फ राजभवन ही नहीं बल्कि राज्यपाल रहते हुए राज्य में जहाँ भी आवश्यकता होती थी ये जरूर जाया करतीं थी और खासकर स्कूलों में छात्राओं को प्रोत्साहन देने के लिए| राई रंगपुर के काउंसलर और झारखण्ड की राजपाल बनने तक द्रौपदी मुर्मू ने स्वयं को विवादों से दूर रखा | एक राज्यपाल प्रदेश के संवैधानिक प्रमुख के तौर पर इन्होने पक्ष विपक्ष दोनों ओर के नेताओं की बातें सुनी | इनके कार्यकाल में राजभवन के दरवाजे हर संगठन के लिए खुले रहे |

आदिवासी हित के लिए द्रौपदी मुर्मू ने राज्यपाल रहते हुए बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के मौजूदा सी एम हेमंत सोरेन को कई बार नसीहतें दीं |

आज ये भारत की राष्ट्रपति हैं | ये एक उदाहरण हैं की आपका सम्बन्ध कितने भी पिछड़े इलाके से क्यूँ न हो, कितनी ही भयंकर परेशानियाँ क्यूँ न हो मानव की जागरूकता उसे शिखर तक पहुँचा सकती है| इनका जीवन सभी देशवासियों को प्रेरणा देता रहेगा | 

लेकिन समाज के लिए कुछ सकारात्मक परिवर्तन करने की इच्छाशक्ति ही थी की एक बार इन्होने फिर स्वयं को समाज के लिए समर्पित कर दिया| 

 

 

 

 

 

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