Safalta ka Rahasya in Hindi-Swami Ramteerth Prerak Suvichar

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Safalta ka Rahasya in Hindi-Swami Ramteerth Prerak Suvichar
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फैंके फलक को तारे सब बख्श दूंगा मैं, भर भर के मुट्ठी हीरे सब बख्श दूंगा मैं

सूरज को गर्मी चाँद को ठंडक, गुहर को आग, यूँ मौज अपनी आई सब बख्श दूँगा मैं – दोस्तों ये शब्द हैं भारत के विलक्षण और अद्भुत संत के जिन्होंने मात्र अपने 33 वर्ष के जीवन काल में, पूरे विश्व को चमत्कृत किया |

हम बात कर रहें हैं स्वामी रामतीर्थ जी की,

स्वामी राम तीर्थ जी स्वयं को राम कहते थे| उन्होंने वेदान्त के अनुसार जीवन जीने का सन्देश दिया| आज का हमारा विषय है सफलता का रहस्य जो स्वामी रामतीर्थ जी के जापान में 7 अक्टूबर 1902 में दिए गए भाषण का भावार्थ और अंश है |

स्वामी रामतीर्थ कहते हैं की किसी योजना को व्यवहार में लाना एक बात है और उस योजना के मौलिक तत्वों को आत्मसात करना बिलकुल दूसरी बात है |

यदि कोई श्रमिक किसी रासायनिक क्रिया का अनुपालन करते हुए किसी वस्तु का उत्पादन करता है तो उसे हम वैज्ञानिक नहीं कह सकते| उसी प्रकार रेल के इंजिन को चलाने वाले को हम इंजिनियर नहीं कह सकते | क्योंकि उसका श्रम एक मशीन की तरह है |

स्वामी राम तीर्थ ने जीवन में सफलता के लिए सात महत्वपूर्ण बिन्दुओं की व्याख्या की

जिनमे से पहला पॉइंट है – कर्म

स्वामी रामतीर्थ सफलता के रहस्य को जानने के लिए सबसे पहले अपने चारों ओर व्याप्त और सहज स्वाभाविक प्रकृति से ही प्रेरणा लेने के लिए कहते हैं | वे कहते हैं की आप बहते हुए झरनों को देखिये, ये सजीव पुस्तकें हैं जो ज्ञान का भण्डार हैं |

आप शिलाओं को देखिये इनसे तो निरंतर उपदेश ही उद्घाटित होते रहते हैं | ये दोनों शाश्वत तथा असंदिग्ध रूप से निरंतर और आबाद कर्म की शिक्षा हमें देते हैं | इसी प्रकार प्रकाश से हमें देखने की शक्ति प्राप्त होती है| दीपक हमें प्रकाश तभी दे पाता है जब वो अपने तेल और बाती को खर्च करने से कोई परहेज नहीं करता है |

दीपक हमें शिक्षा देता है की यदि आपने अपने निहित स्वार्थों को बचाने की कोशिश की तो आप स्वयं बुझ जायेंगे | यदि हम अपने शरीर के लिए आराम सुख और चैन ढूंढते रहे और अपना समय इन्द्रिय सुख और विलासिता में बर्बाद करते रहे तो हमारे लिए किसी प्रकार की आशा करना निरर्थक है |

दूसरे शब्दों में हमारी मौत का बुलावा है और कर्मठता केवल कर्मठता ही जीवनदायिनी है| हम नदी और तालाब के पानी पर नजर डालें तो पाएंगे की नदी का बहता हुआ पानी ताजा, साफ़, पीने योग्य और आकर्षक होता है| जबकि ठहरा हुआ पानी गन्दा और तिरष्कृत होता है |

अगर हम सफलता के इच्छुक हैं तो नदी प्रवाह की निरंतर गति और कार्यशैली का अनुसरण करना पड़ेगा | आईये प्रतिदिन अच्छे से और अच्छा बने|

यदि आप इस सिद्धांत पर कार्य करते रहे तो आप देखेंगे की जितना छोटा होना सहज है उतना ही सरल है बड़े बनना |

स्वामी रामतीर्थ जी सफलता का दूसरा सूत्र बताते हैं – आत्मत्याग 

इस प्रसंग में स्वामी जी रंगों का उदाहरण देते हैं वे कहते हैं की सफ़ेद रंग लोगों का पसंदीदा रंग क्यों है ? और काला रंग घृणित क्यों माना जाता है ?

रंगों के इस रहस्य पर से भौतिक विज्ञानं पर्दा उठाता है| लाल गुलाब लाल इसलिए है की वो लाल रंग को परावर्तित कर देता है| लाल रंग के अलावा जो भी रंग है उन्हें वो पूर्ण रूप से आत्मसात कर लेता है |

जबकि काला रंग सभी रंगों को आत्मसात कर लेता है और सफ़ेद रंग अपने पास कुछ भी न रखते हुए सभी रंगों को परावर्तित कर देता है|

सफ़ेद दिखने का रहस्य है – पूर्ण त्याग

अर्थात जो कुछ भी आपको मिलता है उसे तत्काल आप वापस कर दें | जितना अधिक हम ज्ञान के प्रकाश को फैलायेंगे, उसका विस्तार करेंगे उतना ही अधिक हम स्वयं ज्ञान प्राप्त करेंगे और ज्ञान स्वरुप बनते जायेंगे |

तीसरा बिंदु आता है – आत्मविस्मृति 

स्वामी रामतीर्थ कहते हैं की हमें कार्य में स्वयं को डुबा देना चाहिए | हमें अपने आपको भूलकर कार्य में संलिप्त हो जाना चाहिए तभी सफलता प्राप्त की जा सकती है | विद्यार्थी जानते हैं की जब वो भाषण दे रहें होते हैं तब उनके दिमाग में यदि ये भाव आ जाये की मैं भाषण दे रहा हूँ बस उसी क्षण उनका भाषण विकृत हो जाता है | बेजान और बेईमानी भी हो जाता है |

अपने कार्य में अपनी शुद्धात्मा का परित्याग कर दीजिये, यूज़ पूर्णतया विस्मृत कर दीजिये | फिर देखिये सफलता आपके कदम चूमती है |

स्वामी राम तीर्थ सफलता का चौथा सिद्धांत बताते हैं – प्रेम , सार्वभौम प्रेम 

प्यार कीजिये और प्यार पाईये| प्रेम करना और प्रेम पाना यही तो लक्ष्य है| जीवित रहने के लिए शरीर में, यदि हाथ का ये विचार हो की मेरी कमाई से पूरा शरीर क्यों लाभान्वित हो क्या होगा ?

हाथ जब कोई भी खाद्य या पेय पदार्थ मुख में डालेगा तभी पूरे शरीर को शक्ति प्राप्त होगी | सीधे रूप से हाथ अपने लिए कुछ नहीं कर सकता | इसलिए हाथ को अपनी भलाई को सम्पूर्ण शरीर की भलाई में ही देखना पड़ता है |

दोनों के हित एक ही हैं, प्रेम की मूर्ति बनी है और आप सफल हैं |

जो व्यापारी अपने ग्राहकों के हितों को अपना स्वयं का हित नहीं मानता है, वो सफल नहीं हो सकता है| सफल होने के लिए व्यापारी को अवश्य ही अपने ग्राहकों से प्रेम करना पड़ेगा | उसे अपने ग्राहकों को अपने ही रूप में देखना पड़ेगा | उसे मानना होगा की वे सब उसके ही हैं |

सफलता के रहस्य का पांचवा बिंदु है – प्रसन्नता 

स्वामी राम तीर्थ जी कहते हैं की प्यारे भाईयों आप स्वभाव से ही प्रसन्न है| प्रसन्नता अपनी प्रकृति का अभिन्न अंश है | राम को आपके खिलते हुए चेहरे पर मुस्कान देखकर प्रसन्नता होती है| आप तो मुस्कुराते हुए पुष्प हैं| आप मानवता की हंसती हुई कली हैं | आप स्वयं प्रसन्नता की साकार प्रतिमूर्ति हैं | इसलिए राम आपके सामने इस बात पर बल देना चाहता है की आप समय के अन्तकाल तक अपने जीवन में प्रसन्नता के तत्व को जीवंत बनाये रखे |

आईये देखे की प्रसन्नता के इस तत्व को जीवन में किस प्रकार सुरक्षित रखा जा सकता है –

आप अपने श्रम के सुखद परिणामों की चिंता न करें| भविष्य के बारे में चिंतित न हों | संकोच और संशय के शिकार न बने | सफलता और असफलता के बारे में न सोचें | बस कार्य के खातिर, कार्य के प्रयोजन के लिए निरंतर कार्य करते रहें |

कर्म स्वयं में अपना पुरस्कार है| भूतकाल की निराशाओं को बलाएं ताख रखकर और भविष्य के बारे में चिंताओं को परे रखकर बस जीवंत वर्तमान में काम करिए | कार्य में संलग्न रहिये और काम ही करते रहिये | ये भावना आपको सभी परिस्थितियों में प्रसन्नता से ओतप्रोत रखेगी |

स्वामी रामतीर्थ कहते हैं की हमारे पास जो भी वस्तु उपलब्ध है, हम उसका सदुपयोग करें| यहाँ स्वामी जी एक उदाहरण देते हैं की यदि हमें एक अँधेरी रात में बीस मील की यात्रा करनी है और हमारी लालटेन केवल दस फीट तक प्रकाश करने में सक्षम है तो हमें सारे रास्ते पर प्रकाश की व्यवस्था करने के बारे में न सोचकर, दस कदम ही आगे बढ़ना चाहिए अगले दस कदम हमें फिर प्रकाश में ही दिखाई देंगे |

ये प्राकृतिक विधान है कि सच्चे, ईमानदार और कर्मठ कार्यकर्ताओं को अपने पथ में कभी भी अंधकारमय स्थल का सामना नहीं करना पड़ता है |

स्वामी रामतीर्थ एक दूसरा उदाहरण देते हुए बताते हैं यदि हमें तैरना नहीं आता है और हम पानी में गिर जाते हैं तो भी हम डूबने से बच सकते हैं यदि हमारा मानसिक संतुलन बना रहे क्योंकि मनुष्य का गुरुत्व, पानी के गुरुत्व से कम होता है |

यदि हम अपना मानसिक संतुलन बनाये रखें तो पानी के ऊपर ही तैरते रहेंगे डूबेंगे से बचे रहेंगे |परन्तु हड़बड़ी और बेचैनी में हम अपना मानसिक संतुलन नहीं रख पाते और हम पानी में डूब जाते हैं |

इसी प्रकार भविष्य की चिंता और बेचैनी, असफलता का बहुत बड़ा कारण बनती है |

हम प्रकृति के एक सिद्धांत का विचार करें यदि हम अपनी परछाई को पकड़ने का प्रयास करते हैं और वो हमसे आगे आगे भागती रहती है| परन्तु अगर उस परछाई की तरफ से अपनी पीठ कर लें, सूरज की ओर चलें तो वही परछाई हमारे पीछे पीछे आती है |

जिस क्षण आप परिणामों के बारे में सोचना बंद कर देते हैं, जिस क्षण आप अपनी सम्पूर्ण शक्ति, सम्पूर्ण उर्जा अपने वर्तमान कर्तव्यों में लगा देंगे उसी समय सफलता का वरण करेंगे |

स्वामी रामतीर्थ जी कहते हैं की सफलता न केवल आपके हाथ होगी बल्कि कुत्ते की भांति आपे पीछे पीछे आएगी| इसलिए आप सफलता के पीछे नहीं दौड़िए| सफलता को अपना लक्ष्य नहीं बनाईये बस तभी और केवल तभी सफलता आपको खोजेगी |

सफलता के रहस्य का छठा बिंदु है – निर्भीकता 

स्वामी रामतीर्थ स्वयं को राम के नाम से संबोधित करते थे | निर्भीकता के विषय में स्वामी रामतीर्थ कहते हैं की राम सफलता के जिस अगले बिंदु की ओर आप लोगों का ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं, वो है – निर्भीकता |

ये वो तत्व है जिसे राम चाहता है की आप स्वयं अपने अनुभव और प्रयोग से उसका परिक्षण करें |

निर्भीकता ऐसी है की जिसके एक निगाह से ही शेरों को पालतू बनाया जा सकता है| एक ही दृष्टिपात से शत्रुओं को शांत किया जा सकता है | और निर्भीकता के मात्र एक वेद्पूर्ण झपट्टे से विजय प्राप्त की जा सकती है |

राम ने हिमालय के घनघोर जंगलों की घाटियों में भ्रमण किया है| राम का सामना चीतों, शेरों, भालू , भेड़ियों तथा अन्य खूंखार जानवरों से हुआ है परन्तु राम को कोई नुकसान नहीं हुआ | राम ने इन जंगली पशुओं से आँख से आँख मिलाई| सीधा उनके चेहरे पर अपनी निगाह गड़ाई| नजरें मिलीं उन खूंखार जानवरों की निगाहें झुकी | और तथाकथित खूंखार जानवर दुम दबाकर लौट गए |

ये है निर्भीकता का प्रभाव| निर्भीक को कोई भी हानि नहीं पहुँचा सकता है |

कदाचित आप लोगों ने देखा होगा की किस प्रकार कबूतर बिल्ली का सामना होने पर अपनी आँखे बंद कर लेता है | वो यह सोचता है की क्योंकि उसने अपनी आँखे बंद कर ली हैं वो अब नहीं किसी को देख रहा है इसलिए बिल्ली भी उसे नहीं देखती होगी |

नतीजा क्या होता है ? बिल्ली कबूतर पर झपट्टा मारती है और उसे खा जाती है | निर्भीकता तो यहाँ तक होती है की चीते को पालतू बना लिया जाता है | परन्तु जो डरता है, उस डरपोक को बिल्ली भी झपट लेती है |

आपने शायद यह भी देखा होगा की किस प्रकार एक कांपता हाथ, एक बर्तन से दूसरे बर्तन में कोई तरल पदार्थ सफलतापूर्वक उड़ेलने में, सफल नहीं हो पाता है | वो तरल पदार्थ निश्चित ही इधर उधर फ़ैल जाता है लेकिन किस आसानी एक सुदृढ़ निर्भीक हाथ उस तरल पदार्थ को दूसरे बर्तन आसानी से उड़ेल में सक्षम हो पाता है |

फिर भी एक बूँद बाहर नहीं गिरती है | इससे प्रकृति एक अनुपम सीख देती है, उसमे कोई दुविधा नहीं है पूर्णतया सुस्पष्ट है | निश्चित मानिए की निराशा दुर्बलता है, इस कमजोरी को दूर कीजिये| सारी शक्ति साड़ी उर्जा निर्भीकता से आती है, निर्भीकता को आत्म सात कीजिये और निडर बनिए |

सफलता के रहस्य का सातवाँ बिंदु है – आत्म निर्भरता

स्वामी रामतीर्थ जी कहते हैं की अंत में राम सफलता के रहस्य मूल आधार के बारे में चर्चा करेंगे |  ये अत्यंत सारगर्भित सिद्धांत है और अत्यंत महत्वपूर्ण है वो है आत्म निर्भरता का स्वावलंबन का सिद्धांत

यदि कोई राम से एक शब्द में , अपने दर्शन की व्याख्या करने को कहे तो राम का उत्तर होगा आत्म निर्भरता अर्थात आत्म ज्ञान ये अक्षरशः सत्य है|

जब आप स्वयं अपनी सहायता करेंगे, परमात्मा को अवश्यमेव आपकी सहायता करनी होगी | आपकी आत्मा ही ईश्वर है, जो अनंत है जो सर्व शक्तिमान है उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है |

सिंह को वनराज कहा जाता है, वो स्वयं पर निर्भर है, वो बहादुर है, शक्तिशाली है और सभी कठिनाईयों का विजेता है, कारण है की वो स्वयं में अवस्थित है | इसके विपरीत हाथियों को देखिये, उन्हें उनानियों ने जब सबसे पहले भारत में देखा तो इनको चलते फिरते पर्वत की संज्ञा दी | उचित भी था |

परन्तु हाथी अपने शत्रुओं से सदैव भयभीत रहते हैं वो हमेशा झुण्ड में रहते हैं और जब ये सोने लगते हैं तो अपनी सुरक्षा के लिए किसी हाथी को चौकीदारी कहने के लिए कहते हैं| कोई भी हाथी स्वयं पर या अपनी क्षमताओं पर निर्भर नहीं रहता है, वो अपने आपको कमजोर महसूस करते हैं और विधान भी यही है की जब आप स्वयं को शक्तिहीन मानेंगे तो आपको शक्तिहीन होना ही होगा|

शेर की एक साहसी दहाड़ हाथियों को भयाक्रांत कर देती है और हाथियों का पूरा समूह किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है | की करें तो आखिर क्या करें ?

कितना विचित्र तथ्य है की एक हाथी जिसे चलता फिरता पर्वत कहा जाता है जो अपने पैरों के तले दर्जनों शेरों को कुचलने में समर्थ है वो अपने आपको असहाय महसूस करने लगता है, भयाक्रांत हो जाता है |

यहाँ पर दो भाईयों की एक कथा भी प्रचलित है जिन्हें अपनी पैत्रिक संपत्ति बराबर बराबर मिली थी| उनमे से एक ने अपनी संपत्ति कई गुना बढ़ा ली तथा एक निर्धन हो चुका था |

उनसे पूछा गया तो पता चला की जिसने संपत्ति बढ़ा ली थी वो अपने सेवकों से कहता था आओ ये काम करते हैं आओ वो काम करते हैं| जबकि जो निर्धन हो चुका था वो अपने आसन पर बैठकर आदेश देता था की जाओ वो काम करो |

वो चले जाते थे पर साथ ही उसके सौभाग्य ने भी, जाने के उस आदेश का पालन किया था|

निष्कर्ष 

अरे मेरे प्यारे मित्रो, भाईयों प्यारे धरती वासियों ऐसा ही विधान है – मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं विधाता है बस एक बार इस सत्य का आत्म साक्षात्कार कीजिये और आप तत्क्षण उन्मुक्त हैं, स्वतंत्र हैं |

एक बार इसकी अनुभूति कीजिये की आप सदैव के लिए सफल हैं| इस सत्य को एक बार आत्मसात कीजिये और देखिये की यही अंधकारमय काल कोठरी अविलम्ब एक आनंद में परिवर्तित हो जाएगी | एवमस्तु 

दोस्तों आपको ये पोस्ट अच्छी लगी हो तो इसे आप लाइक, कमेंट और शेयर जरूर करें | अगर आप स्वामी राम तीर्थ के बारे में और जानना चाहते हैं तो कमेंट बॉक्स में लिखे| यथसंभव हम इस विषय पर और कुछ शामिल करने का प्रयास करेंगे |

 

 

 


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